लेखक - पूनम शर्मा - ईमेल द्वारा
बहाई धर्म का जन्म, सन 1863 में, इराक के बगदाद शहर में हुआ, जब बहाउल्लाह ने रिदवान के बगीचे में अपने कुछ निकट साथियों से अपने ईश्वरीय अवतार होने की घोषणा की।
अपनी उद्घोषणा से पहले, बहाउल्लाह, बाबी धर्म के अनुयायी थे। बाबी धर्म की स्थापना सन 1844 में मिर्ज़ा अली-मोहम्मद शिराज़ी ने ईरान में की थी।
बाबी धर्म के संस्थापक, बाब, शेख अहमद अहसाई के अनुयायी थे। शेख अहमद अहसाई सऊदी अरब के अल-अहसा शहर के रहनेवाले थे, जो ईरान आए और वहीं बस गए।
शेख अहमद एक अख़बारी शीया मुसलमान थे, लेकिन उनकी विचारधाराएँ मुख्यधारा के अखबारी शीया मुसलमानों से अलग थी। उनकी विचारधाराओं का पालन करनेवाले समूह को शैखी कहा जाता था। बाबी धर्म के संस्थापक शैखी थे।
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आइए हम फिर से बहाई धर्म के विषय पर चर्चा करते हैं।
बाबीयों का मानना था की सारे ईरान को बाबी हो जाना चाहीये, बाबी मानते थे की बाब मुसलमानों के इमाम मेहदी हैं। वे यह भी मानते थे की हर उस व्यक्ति को जान से मार देना चाहीये जो बाब को इश्वर का अवतार नहीं मानता। बाबीयों का यह भी मानना था की सारी ग़ैर-बाबी पुस्तकों को जला देना चाहीये और करबला में इमाम हुसैन की समाधी और मक्का में काबा सहित, सभी धार्मिक स्थलों को नष्ट कर देना चाहीये।
अपने धर्म को ईरान में स्थापित करने हेतु, 1848 से 1850 की कालावधी में, बाबीयों ने ईरानी सरकार के खिलाफ 3 लड़ाईयाँ लड़ी, जिसकी वजह से कई बाबीयों की और ईरानी सैनिकों की प्राणहानी हुईं।
1850 में, सरकार के आदेशानुसार, बाब को सार्वजनिक रूप से, तबरीज़ के एक प्रसिद्ध चौक पर लाकर, गोली मार दी गई।
1852 में कुछ बाबियों ने ईरान के शाह से बदला लेने के लिए उनको मारने की कोशिश की। परिणामस्वरूप कई बाबीयों को पकड़ कर कैद कर दिया गया और कई बाबीयों को मार दिया गया।
अपने वसीयतनामे में बाब ने मिर्ज़ा याहया सुब्हे अज़ल को अपना उत्तराधिकारी और अपना प्रतिबिंब नियुक्त किया था। मिर्ज़ा याहया, बहाउल्लाह के छोटे भाई थे और वे बहुत ही सरल व्यक्ति थे।
बाबीयों के अपराधों के कारण, बहाउल्लाह, जो की एक बाबी थे, उनको भी पकड़ कर क़ैद कर दिया गया। 1853 में रूस के राजदूत के अनुरोध और मध्यस्थता के कारण बहाउल्लाह और उनके साथीयों को छोड़ दिया गया और उनसे इराक जाने को कहा गया।
1853 में ही बहाउल्लाह बगदाद पहुँच गए थे। मिर्ज़ा याहया भी बगदाद आ गए थे। बगदाद में बाबीयों के नेतृत्व को लेकर दोनो भाईयों में मतभेद शुरू हो गए। मिर्ज़ा याहया, सुबहे अज़ल एक सीधे-साधे व्यक्ति थे पर बहाउल्लाह अत्यंत चतुर थे। बाबीयों को संचालित करना बहाउल्लाह के लिए आसान काम था, क्यूँ की उनकी चतुरता के कारण बढ़ती संख्या में बाबी उन्हें अपना धार्मिक नेता स्विकार करने तैयार थे।
नेतृत्वता को लेकर दोनो भाईयों के बीच मतभेद बढ़ते चले गए। बाबी दो गुटों में बट गए। एक गुट मिर्ज़ा याहया के साथ हो गया और एक गुट बहाउल्लाह के साथ। दोनो गुट एक दूसरे को काफ़िर मानते थे।
अंततः, नेतृत्वता की इस लड़ाई में बहाउल्लाह की जीत हो गई। बहाउल्लाह के माननेवाले, बहाई कहलाने लगे और मिर्ज़ा याहया - सुबहे अज़ल के माननेवाले अज़ली कहलाए जाने लगे। बहाईयों और अज़लीयों के संघर्ष में कई अज़लीयों की जान चली गई।
इस बढ़ते संघर्ष के कारण बहाउल्लाह को एक देश से दूसरे देश और दूसरे देश से तीसरे देश भेजा गया। अंततः, बहाउल्लाह फिलस्तीन आ गए, जहाँ उस्मानी खिलाफत का राज चलता था। बहाउल्लाह और उनके बेटे अब्दुल-बहा फिलस्तीन में मुसलमानों की तरह जीवन बिताने लगे। वे मस्जिद जाते, नमाज़ पढ़ते, रमज़ान के महीने में रोज़े रखते और उनके घर की महीलाएँ हिजाब पहनतीं। अकसर फिलस्तीनी उनको मुसलमान समझते।
1892 में बहाउल्लाह को एक मामूली बुखार आया जो अगले दिनों में लगातार बढ़ता गया, और फिर अंत में 29 मई को उनकी मृत्यु हो गई। 74 बरस की उम्र में, मृत्यु के समय, बहाउल्लाह की तीन पत्नियाँ थीं और उनके 14 बच्चे थे।
बहाउल्लाह के सबसे बड़े पुत्र अब्दुल-बहा के फिलस्तीन में सभी धार्मिक नेताओं और बड़े लोगों के साथ अच्छे संबंध थे, विशेषतः यहूदीयों और ज़ायनिस्ट अंग्रेज़ों के साथ। सन 1920 में, पहले विश्व-युद्ध के खत्म होने के बाद, अंग्रेज़ों ने अब्दुल-बहा को अपने प्रति उनकी सेवा, सहाय और सलाह के लिए 'नाइट' की पदवी प्रदान की।
धीरे-धीरे अब्दुल-बहा और उनके माननेवाले शक्तिशाली होते गए। वे लोग फिलस्तीन में बड़ी-बड़ी ज़मीनें और बंगले खरीदने लगे।
अपने वसीयतनामे में, बहाउल्लाह ने अपने दूसरे सुपुत्र - मिर्ज़ा मोहम्मद अली, जिनको बहाउल्लाह ने 'घुस्ने अकबर' की पदवी दी थी, को अब्दुल-बहा के बाद, अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
अब्दुल-बहा और उनकी सगी बहन, बहीये खानुम, का बरताव अपने सौतेले भाईयों के साथ अच्छा नहीं था। मिर्ज़ा मोहम्मद अली और उनके सगे भाई, बदीउल्लाह और दियाउल्लाह, यह तीनों बहाउल्लाह की दूसरी पत्नि फातिमा खानुम की सन्तान थीं। अब्दुल-बहा और बहीये खानुम बहाउल्लाह की पहली पत्नी से थे। बढ़ते दुर्व्यवहार के कारण, अब्दुल-बहा और मिर्ज़ा मोहम्मद अली के संबंध खराब होने लगे।
अब्दुल-बहा का सौतेलापन और दुर्व्यवहार और अपने-आप को बहाउल्लाह की जगह पर समझना, मिर्ज़ा मोहम्मद अली और उनके सगे भाईयों को कभी नहीं भाता। अब्दुल-बहा का अपने पिताजी के सहयोगी, खादिमुल्लाह, जो 40 साल तक बहाउल्लाह की सेवा में रहे और उनकी वाणी लिखते रहे, को थप्पड़ मारना कतई नहीं भाता। मिर्ज़ा मोहम्मद अली का मानना था कि उनके पिता बहाउल्लाह, एक इश्वरीय अवतार थे, पर अब्दुल-बहा एक आम मनुष्य की तरह हैं। वे बहा के सेवक है और इसके सिवा कुछ नहीं!
अब्दुल-बहा और उनके सौंतेले भाईयों के बीच दूरीयाँ बढ़ती चली गईं। अंततः अब्दुल-बहा ने अपने तीनो भाईयों को संविदा-भक्षक घोषित कर दिया और उनके हिस्से की सम्पत्ति को हड़प लिया। बहाउल्लाह के आदेशानुसार, मिर्ज़ा मोहम्मद अली को बहाई समुदाय का उत्तराधिकारी होना था, पर अब्दुल-बहा ने उन्हे बहिष्कृत कर, धर्म के बाहर निकाल दिया।
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सन 1921 में अब्दुल-बहा की मृत्यु हो गई और उन्हे इस्लामी विधीविधान के अनुसार, फिलस्तीन के हाईफ़ा शहर में दफ़न कर दिया गया। उनके अंतिम संस्कार में कई धार्मिक हस्तियां और अंग्रेज़ी जनरल शामिल हुए।
अपने वसीयतनामें में अब्दुल-बहा ने अपने सबसे बड़े नाती, शोगी एफेन्दी, को धर्म-संरक्षक नियुक्त किया, और अपनी वसीयत में यह भी लिख दिया कि शोगी एफेन्दी के पश्चात शोगी की पहली सन्तान उनकी उत्तराधिकारी होगी। पर शोगी एफेन्दी नि:संतान ही इस दुनिया से चले गए।
अपनी मृत्यु से पहले, शोगी एफेन्दी ने अपने सभी रिश्तेदारों, भाई-बहनों यहाँ तक की अपने सगे माता-पिता को भी धर्म से बाहर कर दिया।
अब्दुल-बहा ने अपनी वसीय्यत में स्पष्ट रूप से यह लिख दिया था कि बहाई युगधर्म की सुरक्षा के लिए हर युग में धर्म-संरक्षक का होना अनिवार्य है, और धर्म-संरक्षक ही विश्व न्याय मंदिर के स्थायी प्रमुख है।
शोगी एफेन्दी अपनी एक पुस्तक, बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था में लिखते हैं कि – यदि यह विश्व व्यवस्था धर्म-संरक्षक से वियुक्त हो जाएगी तो विकृत हो जाएगी। बहाई लेखनों से यह भी स्पष्ट होता है कि यदि विश्व न्याय मंदिर का कोई सदस्य गलत काम करता है तो धर्म-संरक्षक ही उसे बाहर कर सकता है, यह भी लिखा है कि संविदा-भक्षक को केवल धर्म-संरक्षक की बहिष्कृत कर सकता है।
आज, बहाई धर्म का कोई संरक्षक जीवित नहीं है। बहाई धर्म के बुरे हाल है। कुछ लोग इस धर्म में ज़रूर शामिल हो रहे हैं, परंतु कई लोग इसे छोड़ कर अपने पिछले धर्म की ओर पलट रहे हैं। एक समय था जब भारत में 10 हज़ार से अधिक बहाई रहते थे, आज केवल 5 हज़ार रह गये हैं। बहाईयों की जनसंख्या के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
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बहाई धर्म की शिकस्त के कुछ और भी कारण हैं।
आईये दोस्तों, अब हम उन कारणों के बारे में जानते हैं।
1) महिलाओं को विश्व न्याय मंदिर में सेवा करने की अनुमति नहीं है। इसलिए स्त्री-पुरुष समानता का नारा झूठा है।
2) बहाई धर्मिय एक 'बहाई राज्य' स्थापित करने में जुटे हैं। एक एसा महा-राज्य जिसपर विश्व न्याय मंदिर, इज़राईल के हाईफा शहर से राज करेगा।
3) बहाई धर्मियों को नफरत का पाठ सिखाया जाता है, वे संविदा-भक्षकों से घृणा करते है।
4) बहाई धर्मियों ने तथाकथित संविदा-भक्षकों को सताया है, उन्होंने दीयाउल्लाह, जो बहाउल्लाह के सुपुत्र थे और उनके निकट दफन थे, की कब्र को खोल कर, उनके अवशेषों को निकाल कर किसी और जगह दफन कर दिया।
5) बहाईयों में लगभग 15 संप्रदाय हैं।
6) बहाई धर्मियोने अपने धार्मिक पाठ को कॉपीराइट और धार्मिक चिन्हों को ट्रेडमार्क करा रखा है।
7) बहाई धर्मिय कुछ अज्ञात कारणोंवश इज़राइल देश को छोड़कर, हर देश में अपने 'धर्म का प्रचार' करते हैं!
8) बहाई धर्मिय अपनी आबादी के बारे में झूठ बोलते हैं, वे भारत में अपनी आबादी 1.8 मिलियन से अधिक होने का दावा करते हैं, जबकि 2011 की सरकार की जनगणना से पता चलता है कि उनकी संख्या केवल 4572 है।
9) बहाई धर्मिय पश्चिमी देश के नागिरकों के लिए और भारतीयों के लिए भी, बहुत सतर्कता से कुछ ही धार्मिक लेखनों का चयन करके उनकाही अनुवाद करते हैं। बहाई धर्म में भारी सेंसरशिप है।
10) बहाई धर्म में, इन्डिपेंडेंट स्कॉलरशिप की कोई कल्पना नहीं, सभी बहाई पुस्तकों को प्रकाशन से पहले राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा की रीव्यू कमिटी द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक होता है।
11) बहाईयों का मानना है कि सभी पिछले धर्म भ्रष्ट हो गए हैं और अब इन धर्मों में प्राण नहीं। उनका मानना है कि हर धर्म की आयु 1000 साल की होती है, परंतु बहाई धर्म की आयु 5 लाख साल की है। धर्मों की एकता जैसा कुछ नहीं है - उनका मानना है कि उनका धर्म अन्य सभी धर्मों से श्रेष्ठ है।
12) बहाईयों का मानना है कि बहाउल्लाह सभी पैगम्बरों, अवतारों के प्रकट करनेवाले, और सभी पवित्र पुस्तकों के भेजनेवाले हैं। वे खुदाओं के खुदा है!
13) बहाई धर्मिय मानते हैं कि उनकी सर्वोच्च संस्था, विश्व न्याय मंदिर, अचूक है, वे इसे 'ईश्वर की नाव' कहते हैं!
14) बहाई धर्म-संरक्षक शोगी एफेन्दी एक समलैंगिक थे, वे बहाईयों के पैसे खर्च करके महीनों स्विट्जरलैंड की पहाड़ियों में समय बिताते थे।
मित्रों,
मैंने बहाईयों को काफी निकट से देखा है, उनकी पुस्तकें पढ़ीं है, और उनकी कार्यप्रणाली से बखूबी परिचित हूँ। मैं आपसे अनुरोध करती हूँ की आप अपने अमूल्य जीवन का खयाल रखें, और ऐसे नये धर्मों को पसंद करने, और इनमें अपना समय लगाने से पहले थोड़ी रीसर्च कर लें।
अपना ध्यान रखिए, और लुटेरों से सावधान रहिए।
जय हिंद।